Hindi Varnamala Chart | हिंदी वर्णमाला में स्वर और व्यंजन के प्रकार

Hindi Varnamala Chart: हिंदी वर्णमाला, हिंदी भाषा के लिए उपयोग होने वाले वर्णों का संग्रह है। हिंदी वर्णमाला में कुल मिलाकर 52 अक्षर होते हैं, जिन्हें दो श्रेणियों में विभाजित किया जाता है: स्वर (Vowels) और व्यंजन (Consonants)।

हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala), Hindi Varnamala chart |Type of vowels and consonants

Hindi Varnamala Chart

1. स्वर (Vowels): हिंदी वर्णमाला में 11 स्वर होते हैं:

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, (अं, अः)अनुस्वार

विसर्ग: 

Hindi Varnamala Chart
Hindi Varnamala Chart
स्वर

 

2. व्यंजन (Consonants): हिंदी वर्णमाला में 41 व्यंजन होते हैं:

क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह, क्ष, त्र, ज्ञ।

 

हिंदी वर्णमाला का उपयोग हिंदी भाषा में शब्दों, वाक्यों, और वाणी को लिखने और पढ़ने के लिए किया जाता है। वर्णमाला में हर वर्ण का अपना उच्चारण होता है, और वर्णों को विभिन्न संयोजनों द्वारा शब्दों के रूप में मिलाया जाता है।

हिंदी वर्णमाला आपको हिंदी भाषा के संरचना और उच्चारण को समझने में सहायता प्रदान करती है।

इसके अलावा, नीचे दिए गए कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को भी जानना उपयोगी हो सकता है:

 

1. हलंत वर्ण (Halant Varn): हिंदी वर्णमाला में हलंत वर्ण का उपयोग व्यंजनों को मात्राएँ (Conjuncts) बनाने के लिए किया जाता है। हलंत वर्ण ‘्’ के रूप में प्रतिष्ठित होता है। इसका उपयोग करके दो व्यंजनों को मिलाकर नए व्यंजन बनाए जा सकते हैं, जैसे क+ल=क्ल, द+र=द्र, त+र=त्र आदि।

2. मात्राएँ (Matra): हिंदी वर्णमाला में मात्राएँ स्वरों को प्रकट करने के लिए उपयोग होती हैं। मात्राएँ स्वरों के ऊपर लगाई जाती हैं और उनके उच्चारण को स्पष्ट करती हैं। उदाहरण के लिए, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ आदि हिंदी की मात्राएँ हैं।

3. विसर्ग (Visarga): विसर्ग वर्ण ‘ः’ के रूप में प्रतिष्ठित होता है और हिंदी वर्णमाला में उपयोग होता है। यह वर्ण शब्दों के अंत में पाया जाता है और उच्चारण को पूरा करने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, रामः, गीतः आदि।

4. अनुस्वार (Anusvara): अनुस्वार वर्ण ‘ं’ के रूप में प्रतिष्ठित होता है। यह वर्ण किसी व्यंजन के बाद आता है और उस व्यंजन की आवाज को नासिक स्वर (Nasal Sound) में परिवर्तित करता है। उदाहरण के लिए, रंग, संगीत आदि

5. चंद्रबिंदु (Chandrabindu): चंद्रबिंदु वर्ण ‘ँ’ के रूप में प्रतिष्ठित होता है। यह वर्ण किसी व्यंजन के बाद आता है और उस व्यंजन की आवाज को नासिक स्वर में परिवर्तित करता है, लेकिन इसका उच्चारण थोड़ा साम्यभाषी (Nasalized) होता है। उदाहरण के लिए, गंगा, कंचन आ

6. योगवाह (Yogavaha): हिंदी वर्णमाला में कुछ योगवाह वर्ण होते हैं जो दो व्यंजनों को मिलाकर एक नया व्यंजन बनाने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिए, क्ष, त्र, ज्ञ आदि

हिन्दी वर्णमाला में वर्णों की क्रमशः व्याख्या की जाती है। हिंदी वर्णमाला में 42 मूल वर्ण होते हैं, जिन्हें इन निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:

हिंदी वर्णमाला में 42 मूल वर्णों का वर्गीकरण

1. स्वर (Swar): इसमें आठ स्वर होते हैं – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः। ये वर्ण स्वरतत्त्व को प्रदर्शित करते हैं और स्वरानुसारी शब्दों को बनाने में मदद करते हैं।

2. व्यंजन (Vyanjan): इसमें ३३ व्यंजन होते हैं – क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह। ये वर्ण व्यंजनतत्त्व को प्रदर्शित करते हैं और व्यंजनानुसारी शब्दों को बनाने में मदद करते हैं।

3. अनुस्वार (Anuswar): यह वर्ण व्यंजन के बाद आता है और नासिक स्वर को प्रकट करता है। इसका प्रतीक हैं ‘ं’। उदाहरण के लिए, रंग, संगीत।

4. विसर्ग (Visarg): विसर्ग वर्ण व्यंजन के बाद आता है और नासिक स्वर को प्रकट करता है। इसका प्रतीक हैं ‘ः’।

5. हलंत वर्ण (Halant Varn): हिंदी वर्णमाला में हलंत वर्ण का उपयोग व्यंजनों को मात्राओं (Conjuncts) बनाने के लिए किया जाता है। हलंत वर्ण ‘्’ के रूप में प्रतिष्ठित होता है। यह वर्ण व्यंजनों के बाद लगाया जाता है और दो व्यंजनों को मिलाकर नए व्यंजन बनाने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, क+ल=क्ल, द+र=द्र, त+र=त्र आदि।

6. अक्षर (Akshar): हिंदी वर्णमाला में हर वर्ण को “अक्षर” कहा जाता है। हर वर्ण एक स्वतंत्र ध्वनि को प्रतिष्ठित करता है और भाषा में उपयोग होता है। इन अक्षरों की संख्या 52 होती है, जिनमें से 10 स्वर (वोवेल्स) और 42 व्यंजन (कंसोनेंट्स) होते हैं। हर अक्षर का एक निश्चित उच्चारण होता है और उसका अपना नाम होता है।

7. अल्प्रसर (Alpaprash): हिंदी वर्णमाला में अल्प्रसर वर्णों का उपयोग नहीं होता है। ये वर्ण होते हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। इन वर्णों का केवल उच्चारण होता है और उनका कोई व्यंजनिक महत्व नहीं होता है।

8. संयुक्त व्यंजन (Consonant Conjuncts): हिंदी वर्णमाला में कई संयुक्त व्यंजन होते हैं, जिन्हें “संयुक्त व्यंजन” कहा जाता है। ये व्यंजन दो या अधिक व्यंजनों के मेल से बनते हैं। उदाहरण के लिए, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र आदि। इन संयुक्त व्यंजनों का एक ही उच्चारण होता है और ये अक्षरों की एक अलग समूह होते हैं।

स्वरो का वर्गीकरण कितने प्रकार से होता है?

हिंदी वर्णमाला में स्वरों का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से होता है:

 

1. स्वर (Simple Vowels): यह स्वर हैं जो अकेले ही होते हैं और किसी अन्य स्वर के साथ मिलकर नहीं बनाते हैं। उदाहरण के लिए, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।

2. दीर्घ स्वर (Long Vowels): ये स्वर होते हैं जो लंबी ध्वनि के साथ उच्चारित होते हैं। इन्हें अक्षर के ऊपर दोगुना मात्रा (विराम चिह्न के साथ) लगाकर दिखाया जाता है। उदाहरण के लिए, आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।

3. ह्रस्व स्वर (Short Vowels): ये स्वर होते हैं जो छोटी ध्वनि के साथ उच्चारित होते हैं। इन्हें अक्षर के ऊपर एकल मात्रा लगाकर दिखाया जाता है। उदाहरण के लिए, अ, इ, उ, ऋ, ए, ओ।

4. संयुक्त स्वर (Diphthongs): संयुक्त स्वर (Diphthongs) वह वर्ण हैं जो दो ध्वनियों के संयोग से उच्चारित होते हैं। इनमें ध्वनियों के बीच में स्वरंश का बदलाव होता है। उदाहरण के लिए, ऐ, औ, अं, अः।

5. स्वरीय अनुस्वार (Vocalic Anusvara): स्वरीय अनुस्वार (Vocalic Anusvara) हिंदी वर्णमाला का एक स्वर है जो एक व्यंजन के बाद उच्चारित होता है और स्वरीय गुण को दर्शाता है। इसे “अं” के रूप में दर्शाया जाता है। यह स्वर संयोगी व्यंजनों के बाद आता है, जैसे क्ष, त्र, ज्ञ, श्र।

6. विकृत स्वर (Diphthongs): ये स्वर होते हैं जो दो स्वरों के मेल से उत्पन्न होते हैं। उदाहरण के लिए, ऐ, औ। इन्हें अक्षर के ऊपर दोगुना मात्रा (विराम चिह्न के साथ) लगाकर दिखाया जाता है।

व्याख्यानिक दृष्टिकोण के अनुसार स्वरों का वर्गीकरण

स्वरों का वर्गीकरण एक व्याख्यानिक दृष्टिकोण से भी किया जा सकता है। इसमें व्यक्ति की उच्चारण क्रिया के दौरान स्वरों की गतिविधि और स्थिति के आधार पर उन्हें वर्गीकृत किया जाता है। निम्नलिखित हैं स्वरों के कुछ वर्गीकृत प्रकार:

 

1. स्थानिक स्वर (Place of Articulation): स्थानिक स्वरों में स्वरों की उच्चारण क्रिया के लिए जीभ और मुख के विभिन्न स्थानों का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, क और ख, ग और घ, च और छ आदि।

2. प्रदेशिक स्वर (Regional Variation): भारतीय भाषाओं में स्वरों का वर्गीकरण क्षेत्रवार भी होता है, जहां अलग-अलग क्षेत्रों में स्थानिक स्वरों का अपना विशेष उच्चारण होता है। इसके उदाहरण हैं, हिंदी वाणिज्यिक स्वरों में के और खे के उच्चारण में क्षेत्रवार अंतर होता है।

3. समयिक स्वर (Temporal Variation): स्वरों का व्याख्यान भी समय के साथ परिवर्तित हो सकता है। उदाहरण के लिए, ध्वनियों की लंबाई, उच्चारण की गति और मध्य ताल द्वारा स्वरों की अवधि और माप को ध्यान में रखता है। इसके अनुसार, स्वरों को तीव्रता या लंबाई के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

4. वाणिज्यिक विभाजन (Phonemic Division): इसमें स्वरों को वाणिज्यिक उपयोग के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। इसके तहत, स्वरों को समानार्थी या विभिन्न अर्थों के लिए उपयोग किए जाते हैं, और उन्हें व्याख्यान में अलग-अलग स्थानों पर प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, हिंदी में अ, आ, इ, ई, उ, ऊ आदि स्वरों को व्याख्यान में प्रयोग किए जाने के आधार पर विभाजित किया जाता है।

5. मोध्य स्वर (Manner of Articulation): मोध्य स्वरों के वर्गीकरण में स्वरों की उच्चारण क्रिया के दौरान जीभ के संपर्क की स्थिति और उसके बाद की हवा की प्रवाह का ध्यान रखा जाता है। इसमें विभिन्न मोध्य स्थितियों जैसे स्वर, अव्यवस्थित स्वर, निम्न स्वर, उच्च स्वर आदि शामिल होते हैं।

ये कुछ मुख्य प्रकार हैं जिनमें स्वरों का वर्गीकरण किया जा सकता है। स्वरों का वर्गीकरण उच्चारण विज्ञान (Phonetics) और भाषा विज्ञान (Linguistics) के क्षेत्र में अध्ययन किया जाता है।

हिन्दी वर्णमाला में व्यंजनों का वर्गीकरण कितने प्रकार से होता है?

हिंदी वर्णमाला में व्यंजनों का वर्गीकरण निम्नलिखित चार प्रकार से होता है:

1. स्वरव्यंजन (Sonorant Consonants): ये व्यंजन होते हैं जो स्वर के साथ मिलकर स्वरंश (syllable) बनाते हैं। इनमें स्वरों की तरह बोली जाती है। उदाहरण के लिए, म, न, ङ, ण, ल, र, य, व।

2. विध्वंसव्यंजन (Obstruent Consonants): ये व्यंजन होते हैं जो विध्वंसी ध्वनि के साथ उच्चारित होते हैं। इनमें स्वरंश के उत्पादन में बाधा उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए, क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ।

3. अनुनासिक व्यंजन (Nasal Consonants): ये व्यंजन होते हैं जो नासिकीय ध्वनि के साथ उच्चारित होते हैं। इनमें नाक के माध्यम से हवा का बहाव होता है। उदाहरण के लिए, म, न, ङ, ण।

4. श्वस्वर व्यंजन (Sibilant Consonants): ये व्यंजन होते हैं जो श्वस्वरीय ध्वनि के साथ उच्चारित होते हैं। इनमें हवा का अधिकांश हिस्सा आंतरित होता है। उदाहरण के लिए, श, ष, स, ह।

5. अव्यवस्थित व्यंजन (Unarranged Consonants): हिंदी वर्णमाला में कुछ व्यंजन अव्यवस्थित यानी कि किसी एक वर्ण या गण के बाद नहीं लिखे जाते हैं। ये व्यंजन हैं: क्ष, त्र, ज्ञ, श्र। इन व्यंजनों का अपना उच्चारण होता है और ये अक्षरों की एक अलग समूह होते हैं। इनका व्यापक उपयोग हिंदी और संस्कृत भाषा में देखा जाता है।

6. अनुस्वार (Anusvara): अनुस्वार (Anusvara) हिंदी वर्णमाला का एक व्यंजन है जो नासिकीय स्वर को दर्शाता है। इसका प्रतीक हैं ं और इसे व्यंजन के बाद या दो व्यंजनों के मध्य जोड़ा जाता है। उदाहरण के लिए, “गंगा” शब्द में “ं” अनुस्वार का प्रयोग होता है। अनुस्वार का उच्चारण बाले व्यंजन के साथ अपने समय के अनुसार होता है।

7. विसर्ग (Visarga): विसर्ग (Visarga) एक अव्यवस्थित व्यंजन है जो “ः” चिह्न के रूप में प्रतीत होता है। इसे स्वर या व्यंजन के बाद आते हुए उच्चारित किया जाता है।

8. अनुनासिक संयुक्त व्यंजन (Nasalized Consonants): हिंदी वर्णमाला में अनुनासिक संयुक्त व्यंजन होते हैं जो नासिकीय व्यंजनों के साथ मिलकर उच्चारित होते हैं। इन्हें अक्षरों के साथ लगाया जाता है। उदाहरण के लिए, अं, आं, इं, ईं, उं, ऊं, ऋं, एं, ऐं, ओं, औं।

9. अग्रस्थ संयुक्त व्यंजन (Preceding Consonant Cluster): ये व्यंजन होते हैं जो दो व्यंजनों के संयोग से उत्पन्न होते हैं और अक्षरों के पहले आते हैं। उदाहरण के लिए, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र। इन व्यंजनों को विशेष संयोग ध्वनि के रूप में उच्चारित किया जाता है।

10. उपध्वन्सित संयुक्त व्यंजन (Subscript Consonant Cluster): ये व्यंजन होते हैं जो दो व्यंजनों के संयोग से उत्पन्न होते हैं और अक्षरों के नीचे लिखे जाते हैं। उदाहरण के लिए, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र। इन व्यंजनों को अक्षरों के नीचे लिखकर उच्चारित किया जाता है।

इस तरह, हिंदी वर्णमाला में व्यंजनों का वर्गीकरण ये दस प्रकार से होता है।

स्वर्णो का वर्गीकरण कितने प्रकार से होता है?

हिंदी वर्णमाला में स्वरों का वर्गीकरण निम्नलिखित तीन प्रकार से होता है:

1. स्वर (Vowels): हिंदी वर्णमाला में 10 स्वर होते हैं। ये हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। इन स्वरों का उच्चारण मुख्यतः वोवेल स्वर के रूप में होता है और इनके आधार पर शब्दों की उच्चारण का नियमित क्रम निर्धारित होता है।

2. स्वरादि (Vowel Signs): हिंदी में स्वरों के साथ स्वरादि (vowel signs) भी होते हैं। ये मात्राओं के रूप में दिखते हैं और स्वरों के ऊपर लगाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, अगर हम अक्षर “क” के साथ “इ” की मात्रा जोड़ते हैं, तो वह “कि” को बना देती है। इस तरीके से स्वरादि स्वरों की मदद से व्यंजनों के साथ जोड़े जाते हैं।

3. अनुस्वार (Anusvara): अनुस्वार (Anusvara) एक चिह्न है जो नासिकीय स्वर को दर्शाता है। इसका प्रतीक हैं ं और इसे व्यंजन के बाद या दो व्यंजनों के मध्य जोड़ा जाता है। उदाहरण के लिए, “गंगा” शब्द में “ं” अनुस्वार का प्रयोग होता है।

हिंदी वर्णमाला से संबंधित सामान्य प्रश्न और उत्तर 

1. वर्ण किसे कहते हैं?

वर्ण, भाषा विज्ञान में एक मौखिक ध्वनि इकाई को संकेतित करने वाली सबसे छोटी इकाई कहा जाता है। यह ध्वनियों के सबसे मूलतत्त्वीय रूप को दर्शाता है और भाषा में वर्णमाला का निर्माण करता है। इसका मतलब है कि वर्ण भाषा का न्यूनतम एकत्तम इकाई है, जिसे आवाज के सबसे सामान्य रूप के रूप में देखा जा सकता है।

2. वर्ण के कितने भेद होते है?

वर्ण (Phoneme) के भेद निम्नलिखित होते हैं:

स्वर (Vowels): स्वर वर्ण में ध्वनियों का आवाज़ीय तत्व होता है जिसमें वायु निकास का रास्ता पूरी तरह से खुलता है। हिंदी में अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं और अः जैसे स्वर वर्ण होते हैं।

व्यंजन (Consonants): व्यंजन वर्ण में ध्वनियों के उच्चारण के लिए वायु के प्रवाह को रोका जाता है या कम किया जाता है। हिंदी में क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ, य, र, ल, व, श, ष, स, ह, क्ष, त्र, ज्ञ और श्र जैसे व्यंजन वर्ण होते हैं।

3. स्वर किसे कहते हैं?

स्वर (Vowel) एक प्रमुख वर्ण होता है जिसे उच्चारित करते समय वायु का निकास पूर्ण रूप से होता है और जिसमें वोकल कोर्ड्स खुले होते हैं। स्वरों की उच्चारण में ध्वनि अवधि और ध्वनि की माप महत्वपूर्ण होती हैं। हिंदी भाषा में अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं और अः जैसे स्वर वर्ण होते हैं। ये स्वर वर्ण मौखिक रूप से उच्चारित किए जाते हैं और वर्णमाला में मूख्य भूमिका निभाते हैं। स्वर वर्ण भाषा में बोली जाने वाली ध्वनियों को संकेतित करने का महत्वपूर्ण कारक होते हैं।

4. हिंदी स्वर की मात्रा कितने प्रकार की होती है?

हिंदी में स्वरों के उच्चारण के लिए मात्राएँ (Matra) उपयोग की जाती हैं। मात्राएँ स्वरों की दीर्घा, स्थान और प्रकार को बदलकर उच्चारित करने में मदद करती हैं। हिंदी में निम्नलिखित मात्राएँ होती हैं:

1. अ की मात्रा: अ (स्वर्गमात्रा)

2. आ की मात्रा: ा (आदेशमात्रा)

3. इ की मात्रा: ि (हलन्तमात्रा)

4. ई की मात्रा: ी (दीर्घमात्रा)

5. उ की मात्रा: ु (गुणमात्रा)

6. ऊ की मात्रा: ू (दीर्घगुणमात्रा)

7. ए की मात्रा: े (स्वरेशमात्रा)

8. ऐ की मात्रा: ै (दीर्घस्वरेशमात्रा)

9. ओ की मात्रा: ो (योगवाहमात्रा)

10. औ की मात्रा: ौ (दीर्घयोगवाहमात्रा)

इन मात्राओं का उपयोग स्वरों के उच्चारण में व्यक्ति के उच्चारण को सुगम और सही बनाने के लिए किया जाता है।

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