संस्कृत वर्णमाला में स्वर और व्यंजन के प्रकार और उच्चारण

संस्कृत वर्णमाला में स्वर और व्यंजन के उच्चारण

 संस्कृत वर्णमाला एक मानक वर्णमाला है जिसका उपयोग संस्कृत भाषा के लिखने और पठने में होता है। संस्कृत वर्णमाला में कुल मिलाकर 47 वर्ण होते हैं, जिन्हें अक्षर (letters) या व्यंजन (consonants) कहा जाता है। संस्कृत वर्णमाला का निम्नलिखित है: 

संस्कृत वर्णमाला में ४९ वर्ण होते हैं। यहां वे संस्कृत वर्ण दिए जा रहे हैं:

1.स्वराः (Vowels):

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, ऌ, ॡ, ए, ऐ, ओ, औ

2. व्यंजनाः (Consonants):

क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण,

त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह 

3. संयुक्ताक्षराः (Compound Consonants):

क्ष, त्र, ज्ञ

4. अल्पप्राणाः (Semi-vowels):

य, र, ल, व

5. महाप्राणाः (Aspirated Consonants):

ख, घ, छ, झ, थ, ध, फ, भ

6. अनुस्वारः (Nasal Sound):

अं

7. विसर्गः (Visarga):

8. अर्धचंद्र (Half Moon):

अः 

इन वर्णों को विभिन्न संयोजनों (conjuncts) और संयुक्ताक्षरों (ligatures) के माध्यम से जोड़कर भी और वर्णानुक्रम में उपयोग किया जा सकता है। संस्कृत वर्णमाला सुंदर, संरचित और प्रभावी होती है और इसका उपयोग विभिन्न संस्कृत ग्रंथों, उपनिषदों, वेदों, मन्त्रों, श्लोकों आदि के लेखन और पठन में किया जाता है।

उपर संस्कृत वर्णमाला की पूरी सूची है, जिसमें स्वर (vowels), व्यंजन (consonants), संयुक्ताक्षर (compound consonants), अल्पप्राण (semi-vowels), महाप्राण (aspirated consonants), अनुस्वार (nasal sound), विसर्ग (visarga), और अर्धचंद्र (half moon) शामिल होते हैं.

ये अतिरिक्त वर्णमाला में शामिल वर्ण हैं जो कि युक्त व्यंजन (conjunct consonants) के रूप में प्रयोग होते हैं और कई व्यंजनों को मिलाकर बनाए जाते हैं।

संस्कृत वर्णमाला में नासिक्य वर्ण 

ङ्-    नासिका + कण्ठ

ञ् –   नासिका + तालु

ण्-    नासिका + मूर्धा

न्-     नासिका + दन्त

म्-     नासिका + ओष्ठ

संस्कृत वर्णमाला में ध्वनि-उत्पादन करने वाले वर्ण और

 उनके उच्चारण के स्थान 

संस्कृत वर्णमाला में स्वर वर्ण (Vowels) मुख्यतः ध्वनि-उत्पादन करने वाले वर्ण होते हैं। इन वर्णों को स्वर कहा जाता है। संस्कृत में स्वर वर्णों की संख्या 13 होती है।

यहां दिए गए हैं संस्कृत वर्णमाला के स्वर वर्णों के नाम और उच्चारण:

1. अ (a): इसका उच्चारण होता है “अ” के आसपास की हवा को सामान्य रूप से छोड़ते हुए। यह एक मात्रिक और अप्रत्यासारी स्वर है। उदाहरण: अपि (api), अकारः (akāraḥ)

2. आ (ā): इसका उच्चारण होता है “आ” के आसपास की हवा को छोड़ते हुए। यह एक मात्रिक और प्रत्यासारी स्वर है। उदाहरण: आपि (āpi), आकारः (ākāraḥ)

3. इ (i): इसका उच्चारण होता है “इ” के आसपास की हवा को छोड़ते हुए। यह एक स्वारस्थ स्वर है। उदाहरण: इति (iti), इष्टं (iṣṭaṁ)

4. ई (ī): इसका उच्चारण होता है “ई” के आसपास की हवा को छोड़ते हुए। यह एक स्वारस्थ स्वर है। उदाहरण: ईश्वरः (īśvaraḥ), ईष्टि (īṣṭi)

5. उ (u): इसका उच्चारण होता है “उ” के आसपास की हवा को छोड़ते हुए। यह एक स्वारस्थ स्वर है। उदाहरण: उपदेशः (upadeśaḥ), उत्तमः (uttamaḥ)

6. ऊ (ū): इसका उच्चारण होता है “ऊ” के आसपास की हवा को छोड़ते हुए। यह एक स्वारस्थ स्वर है। उदाहरण: ऊर्ध्वम् (ūrdhvam), ऊषा (ūṣā)

7. ऋ (ṛ): इसका उच्चारण होता है जीभा को मुख के ऊपरी भाग के पीछे लगाकर कीचड़ निकालते हुए। यह एक स्वारस्थ स्वर है। उदाहरण: ऋतु (ṛtu), ऋषिः (ṛṣiḥ)

8. ॠ (ṝ): इसका उच्चारण होता है जीभा को मुख के ऊपरी भाग के पीछे लगाकर उच्च ध्वनि में कीचड़ निकालते हुए। यह एक स्वारस्थ स्वर है। उदाहरण: ॠणम् (ṝṇam), ॠण (ṝṇa)

9. ऌ (ḷ): इसका उच्चारण होता है जीभा को मुख के नीचे तक ढकेलकर उच्च ध्वनि में कीचड़ निकालते हुए। यह एक स्वारस्थ स्वर है। उदाहरण: ऌकारः (ḷkāraḥ), ऌग्नि (ḷgni)

10. ॡ (ḹ): इसका उच्चारण होता है जीभा को मुख के नीचे तक ढकेलकर उच्च ध्वनि में आकर्षण निकालते हुए। यह एक स्वारस्थ स्वर है। उदाहरण: ॡकारः (ḹkāraḥ), ॡकार (ḹkāra)

11. ए (e): इसका उच्चारण होता है “ए” के आसपास की हवा को छोड़ते हुए। यह एक स्वारस्थ स्वर है। उदाहरण: एकः (ekaḥ), एषः (eṣaḥ)

12. ऐ (ai): इसका उच्चारण होता है “ए” के आसपास की हवा को छोड़ते हुए अच्छी तरह से खोलते हुए। यह एक स्वारस्थ स्वर है। उदाहरण: ऐश्वर्यम् (aiśvaryam), ऐक्यं (aikyaṁ)

13. ओ (o): इसका उच्चारण होता है “ओ” के आसपास की हवा को छोड़ते हुए। यह एक स्वारस्थ स्वर है। उदाहरण: ओजः (ojaḥ), ओषधीः (oṣadhīḥ)

14. औ (au): इसका उच्चारण होता है “ओ” के आसपास की हवा को छोड़ते हुए अच्छी तरह से खोलते हुए। यह एक स्वारस्थ स्वर है। उदाहरण: औषधम् (auṣadham), औपनिषदम् (aupaniṣadam).

पाणिनी के अनुसार वर्णमाला

पाणिनि ने वर्ण या वर्णमाला को 24 प्रत्याहार सूत्रों में विभाजित किया था और उन्हें विशेष क्रम में रखकर 42 प्रत्याहार सूत्र बनाए। यह पाणिनि की महत्वपूर्ण विशेषता है, जिससे वे कम स्थान में अधिक सामग्री को संग्रह कर सकते थे। यदि हम अष्टाध्यायी के अक्षरों की गणना करें, तो उसके ३९९५ सूत्र एक हजार श्लोक के समान होते हैं।

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