क्या पति भी पत्नी से मांग सकता है खर्चा, हाईकोर्ट ने सुनाया ये फैसला
Indian Typing, Utter Pradesh, एक महिला ने मजबूरी में बताया कि उसका तलाक हो चुका है और तलाक की डिक्री 2015 में पारित हो गई है। उसने इस कारण से अपने पति से आर्थिक सहायता की मांग की। हालांकि, हाई कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया है।
पत्नी ने तय किया है कि पति को उसकी इस विवादित मांग को अवरुद्ध करने का कोई अधिकार नहीं है।
पति और पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद में जब गुजारे भत्ते की बात उठती है, तो अधिकांश मामलों में भरण-पोषण के अधिकार पत्नियों को प्राप्त होते हैं। हालांकि, कानून में दोनों पति और पत्नी को एक दूसरे से गुजारा भत्ता मांगने और प्राप्त करने का अधिकार है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक आदेश में तलाक होने के बाद पत्नी द्वारा पति को प्रतिमाह 3,000 रुपये अंतरिम भरण-पोषण देने के निचली अदालत के आदेश को मान्यता दी है।
______________________________________________
Also Read अब आपकी भी जमीन नेशनल हाइवे में जाएगी की तो आपको मिलेगी ये खास सुविधाएं
______________________________________________
हाई कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत पति और पत्नी दोनों को एक दूसरे से भरण-पोषण की मांग करने का अधिकार है। तलाक होने के बावजूद भी पति और पत्नी एक दूसरे से भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं और कोर्ट इसके आदेश जारी कर सकता है। यह कानूनी व्याख्या ने भरण-पोषण के कानूनी अधिकार को लेकर एक नई विवाद पैदा की है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने दो आदेशों को खारिज करते हुए अपनी मुहर लगाई है। पहला आदेश पत्नी द्वारा पति को प्रतिमाह 3,000 रुपये का गुजारा भत्ता देने का होने का था, जबकि दूसरे आदेश में पत्नी द्वारा आदेश के पालन की अवहेलना पर कोर्ट ने निर्णय लिया था। इसके अनुसार, पत्नी के वेतन से प्रतिमाह 5,000 रुपये काटकर कोर्ट को भेजने के लिए उसके अध्यापक को निर्देश दिए गए थे। हाई कोर्ट ने इन दोनों आदेशों को मामले में दखल देने से इनकार करते हुए पत्नी की याचिका खारिज कर दी है।
______________________________________________
Also Read भारत के 5 सबसे भूतिया रेलवे स्टेशन, जहा पर रुकना पड़ सकता है महंगा
____________________________________________
महिला ने मजबूती से दावा किया कि उसका तलाक पहले ही हो चुका है और तलाक की डिक्री 2015 में पास हो चुकी है। इस आधार पर, पति को उससे भरण-पोषण की मांग नहीं करने का अधिकार था, लेकिन यह दलील हाई कोर्ट ने खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 की व्याख्या करते हुए यह कहा कि पति या पत्नी किसी भी समय स्थायी भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं और कोर्ट डिक्री के दौरान या बाद में ऐसी मांग पर भरण-पोषण का आदेश दे सकती है।
कोर्ट ने यह भी बताया कि ‘किसी भी समय’ का मतलब सीमित नहीं होता है और ऐसी मांग पर कोर्ट को आदेश में बदलाव करने का अधिकार होता है, जो परिस्थितियों के मुताबिक किया जा सकता है। इस व्याख्या ने भरण-पोषण के कानूनी अधिकारों पर नई बहस को उजागर किया है।
क्या हुआ था सालो पहले
महाराष्ट्र के इस मामले में, शादी 1992 में हुई थी और 2015 में पत्नी ने तलाक की अर्जी दाखिल की थी, जिसके बाद अदालत ने तलाक की डिक्री पास कर दी थी। पत्नी ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की याचिका दी थी। बाद में, पति ने अदालत में याचिका दाखिल की और स्थायी भरण-पोषण की मांग की।
______________________________________________
Also Read AC को खराब होने से बचाना चाहते है तो इन बातों का रखे ध्यान
_____________________________________________
पति ने दावा किया कि वह अपने भरण-पोषण करने में असमर्थ है, हालांकि पत्नी एमए-बीएड है, एक शिक्षिका है और उसकी मासिक आय 30,000 रुपये है। पति ने दावा किया कि उसने पत्नी के करियर के लिए अपने पर्याप्त योगदान नहीं दिया है। उसने पत्नी से महीने के 15,000 रुपये का स्थायी गुजारा भत्ता मांगा है, जिसके अलावा 3,000 रुपये महीने का अंतरिम गुजारा भत्ता भी मांगा था।
निचली अदालत ने 2017 में अंतरिम गुजारे भत्ते के आदेश जारी किए थे। पत्नी ने आदेश का पालन नहीं किया तो पति ने बकाया राशि की मांग की। इस पर कोर्ट ने 2019 में पत्नी के वेतन से मासिक 5,000 रुपये काटकर बकाया राशि देने का आदेश जारी किया था। पत्नी ने दोनों आदेशों के खिलाफ हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।